गजल (झुकाव)
गजल (झुकाव)
गैर भी बन सकते हैं, अपने कभी,
गैरों से रिश्ता निभा कर तो देखो।
मत सोचो दुसरा ही पुकारे तुम्हें,
हाथ अपना पहले बढ़ा कर तो देखो।
मत निकालो दो शब्द भी मुंह से अगर नहीं चाहते,
प्यार से कभी मुस्करा कर तो देखो ।
मत मारो पत्थर कच्चे फलों पर, फल पकने पर
झुक जाएंगी टहनियां, थोड़ा समय बिता कर तो देखो।
हर मुसाफिर बन जाता है अपना,
रास्ते से कंकड़ उठा कर तो देखो।
मत रखो अंधेरे में किसी को,
हरेक के लिए शमाँ जला कर तो देखो।
मिल सकती हैं हरेक को खुशियाँ,
अपने मन की मैल मिटा कर तो देखो।
मत सोचो दुसरा ही करे शुरुआत नफरतें मिटाने की,
पहले सर अपना झुका कर तो देखो।
जो झुकता है वोही उँचा उठ सकता है सुदर्शन,
अकड़ कर टूट न जाओ कहीं, झुकने की आदत अपना कर तो देखो।