गिरिधर की बंसी
गिरिधर की बंसी
गिरधर की बंसी की धुन पे।
अक्सर पांव थिरक जाते हैं।
पत्ता पत्ता खिल उठता है।
घुंगरू आप बिखर जाते हैं।
शब्द मेरे माला में पिरकर।
गीत कोई जब गा जाते हैं।
जब बंसीधुन पड़ती कानों में।
पांव भी अभिनय कर जाते हैं।
ज्यों बंसी धुन ताल छेड़ती।
परम सुख की अनुभूति होती।
नयन भी मेरे कान्हा को ढूंढते।
नृत्य अलग ही दिखलाते हैं।
कर्णफूल भी झूम झूम के।
थिरक थिरक के नृत्य दिखाते।
धुन बंसी जब कंगन सुनते।
मस्त मग्न हो जाते हैं।
गिरधर की बंसी की धुन पे।
अक्सर पांव थिरक जाते हैं।