घी का ऋण
घी का ऋण
सन्दर्भ:
भारत के प्रसिद्ध जूना अखाड़ा की शाखा ''दत्त'' अखाड़े के गुरु और संत परम्परा के अनुसार उज्जैन की प्रसिद्ध नदी क्षिप्रा को अपनी बहन मानते है और उसे किसी भी अवस्था में कभी पार नहीं करते चाहें, कितनी भी बिकट समस्या ही क्यों न आन पड़ें. बहन क्षिप्रा ने समय-समय पर अपने संत भाइयो पर आयी हुई विपदा में उनका साथ दिया और उस विपत्ति से निपटने में संत भाइयोंकी हरदम सहायता कीं. भारत की महान नदियाँ और उनके निस्वार्थ सेवा और उदारता को शतशः नमन.
संत-साधुओंका इतिहास पुराना
सनातन नामी अखाडा ''जूना''
''जूना'' की शाखा ''दत्त''
शामिल महंत, साधु-संत
शाखा संतो का उज्जैनी ठीकान
क्षिप्रा को मानें बहन समान
संत-नदी का ऐसा भी नाता
मानव -सृष्टि को और करीब लाता
क्षिप्रा हुई विष्णु-रक्त से उत्पन्न
तेज बहाव, निर्मलता, गुण संपन्न
तट पर बसें कईं सिद्ध क्षेत्र धाम
मृत्युंजय महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम
हरसिद्धि, गढ़कालिका, काल-भैरव नाथ
चिंतामन गणेश,राम जनार्दन, मंगल नाथ
भर्तृहरि गुफा, त्रिवेणी तट, नृसिंह घाट
गऊ घाट, सांदीपनि आश्रम, रामघाट
महाकाल चरणोंमें, निरंतर समर्पण
सिद्धवट पर पिंडदान और तर्पण
(बहुत वर्षो पूर्व)
उज्जैनी पड़ा भीषण अकाल
अन्न-जल विरहित, जनता बेहाल
महंत करें क्षिप्रा से प्रार्थना
दया करों, दूर करो विडम्बना
नहीं करेंगे आपका कभी लांघन (नदी को पार)
संत आदर से मानेंगे, बहन
बहन ने भाई का निवेदन स्वीकारा
अकाल से जनता को दिया छुटकारा
तबसें चली, दत्त अखाडा परंपरा
क्षिप्रा को मिलें बहन समान वन्दना
(इक बार)
हुआ विशाल आयोजन भंडारा
अन्न में कम पड़ीं घी की धारा
मठ में थी घी की कमतरता
बिना घी -भोजन, निम्न गुणवत्ता
नदी-पार से लाना, बड़ी विवशता
घिरा धर्म संकट, समय नाजुकता
व्यथा महंत ने, क्षिप्रा बहन को सुनवाया
क्षिप्रा का जल व्यंजनों में मिलाया
जल ने दिखाया घी का प्रभाव
बना प्रसाद, स्वादिष्ट लजीज भाव
बहन ने सुनी भाई की पुकार
रुचकर भोजन जायकेदार
सफल रहा भंडारे का आयोजन
क्षुधा-तृप्ति से हुआ पूर्ण समापन
महंत ने बाज़ार से घी मंगवाया
ऋण बराबर घी, क्षिप्रा में बहाया ...... (जितना लिया था बहन क्षिप्रा से)
बहन ने भाई का मान रखायां
तो भाई ने भी बहन का कर्ज़ा लौटाया
भाई बहन की रखता लाज,
बहन भाई का रखती मान
क्षिप्रा रखें संत भाइयोंका मान
भारत की नदियाँ, सबसे महान
इनसें ही, संपन्न खेत खलिहान
फूल-फलों से बहरें बागान
समय पें सहयोग कर, बचाती लाज
मनोरथ सफल, पूर्ण करतीं काज
जिंदगी के संग भी, जिंदगी के बाद भी
करती रहती प्राणियोंका उद्धार
ऐसी महिमावान नदियों कें
श्री-चरणोंमें शीश बारम्बार
अर्थ:
''जूना'' ''दत्त'' = भारत के प्रसिद्द संत अखाड़ा और उसकी शाखा का नाम
महंत = पीठाधीश, संतो की गादी पर आसीन सर्वोच्च पद
ठीकान = निवास
लांघन = सीमा पार या नदी को पार करना
रुचकर,लजीज = स्वादिष्ट और जायकेदार
क्षुधा-तृप्ति = पेट भरने पर मिलने वाली आत्म-संतुष्टि
