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SUHAS GHOKE

Abstract

4.0  

SUHAS GHOKE

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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कुछ इस तरह था मंज़र मैं बैठा रहा रात तक 

चांद तारो से अपनी तन्हाई बतलाता रहा रात तक 


लबो पे उदासी आंखों में नमी लिए 

ग़म - ए - तरन्नुम मै आसमां को सुनाता रहा रात तक 

      

इन दिनों मेरे हयात मैं ना किसी की रफाकत थी 

फ़ोन में उसकी तस्वीर देख मुस्कुराता रहा रात तक 


हा ज़रूर होगा वो मुकम्मल एक हसीन ख्वाब की तरह 

शब- ओ - रोज़ यही गीत गुनगुनाता रहा रात तक 


ये जो बंजर है मेरे दिल की जमीं 

माज़ी की याद मैं दिल मुरझाता रहा रात तक!


        



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