ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुझे ये क्या हुआ है फिर मुहब्बत कर रहा हूँ मैं।
मिलेगा फिर मुझे धोखा इसी से डर रहा हूँ मैं।।
तिरे पाजेब की छनछन मुहब्बत की सदाएँ हैं।
सदाओं से पुराने ज़ख्म ताज़ा कर रहा हूँ मैं।।
वफ़ा की राह में चलकर बहुत नुकसान झेला है।
नफ़ा की चाह में फिर से मुहब्बत कर रहा हूँ मैं।।
मिरा दिल भी दुखाती हो मुझे पुचकारती भी हो।
मगर इस कशमकश से यार पल पल मर रहा हूँ मैं।।
हसीं ख़्वाबों की दुनिया से चुराकर ख्वाव लाया हूँ।
चुराये ख्वाब अपने चश्म में अब भर रहा हूँ मैं।।