ग़ज़ल
ग़ज़ल
वज्द में हूँ अभी सादगी से तिरी,
जुगनुओं सा हुआ रोशनी से तिरी,
आरजू है बहुत वस्ल की अब हमें,
मर न जाऊँ कहीं तिश्नगी से तिरी,
इश्क़ को तुम हमारे छुपाओ नहीं,
मैं गिरा हूँ बहुत डायरी से तिरी,
है लगा इश्क़ का रोग पहले पहल,
बाद रिश्ता जुड़ा जिंदगी से तिरी,
हर ग़ज़ल भी मिरी सिर्फ तुमसे बनी,
मैं लिखूंगा ग़ज़ल बस ज़मी से तिरी।
