ग़ज़ल
ग़ज़ल
सीने में धड़कता हुआ दिल है तू ,
मेरा माज़ी मेरा मुस्तकबिल है तू।
उफनते खूंखार समन्दरों में ,
मेरे अरमानों की मंज़िल है तू।
हर सपने को दिया आकार ,
आसमान से उत्तरी इंजील है तू।
अपने लहू से सींचा घर को ,
फिर भी दिल से बिस्मिल है तू।
बूढ़ा ग़रीब बाप सोचता है,
घर के लिए बड़ी मुश्किल है तू।
तुझ में दिखता है मेरा अक्स ,
मेरा माज़ी मेरा मुस्तकबिल है तू।