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Yogesh Kanava Litkan2020

Abstract

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Yogesh Kanava Litkan2020

Abstract

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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सीने में धड़कता हुआ दिल है तू ,

मेरा माज़ी मेरा मुस्तकबिल है तू। 


उफनते खूंखार समन्दरों में ,

मेरे अरमानों की मंज़िल है तू। 


हर सपने को दिया आकार ,

आसमान से उत्तरी इंजील है तू। 


अपने लहू से सींचा घर को ,

फिर भी दिल से बिस्मिल है तू। 


बूढ़ा ग़रीब बाप सोचता है,

घर के लिए बड़ी मुश्किल है तू। 


तुझ में दिखता है मेरा अक्स ,

मेरा माज़ी मेरा मुस्तकबिल है तू। 


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