ग़ज़ल
ग़ज़ल
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टूट कर बिखर गया हूँ उसके प्यार में
कश्ती को मांझी छोड़ गया मझधार में
इश्क किया पर ऐश नहीँ
कभी शक न था चाहते यार में
मुझसे राब्ता नहीं तो शिकवा कैसी
क्यों करूँ वक़्त जाया किसी के इंतजार में
होश में आया हूँ दिल टूटने के बाद
रहने लगा था मैं इश्क के खुमार में
हाल-ए-हमज़ा का मत पूछ मेरे यार
पहुंचा दिया था उसने गम के संसार में !