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Rita Jha

Abstract

4.3  

Rita Jha

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गगन के चाँद

गगन के चाँद

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ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना

समय पर आना सुहागन ना सुनेंगी बहाना!

हर रोज तेरी लुका-छिपी बनाती उन्हें दीवाना,

आज बिन तेरे दर्शन सुहागन न खाए खाना,

ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!


ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!

पूरे दिन साजन के लिए सुहागिनों ने रखा व्रत

पल पल उनके मंगल के लिए करती प्रार्थना!

हमेशा रहें स्वस्थ और कायम रहे मुस्कराना!

ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!


ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!

आज तो साजन ने भी साथ देने का ठाना

नहीं गए काम पर अपने बना दिया बहाना,

सुंदर तरीके से आता है पति धर्म निभाना

ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!


ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!

दिन भर किया सबने धर्म कर्म की ही बातें

पकवान बनाए ढेरों सजा के रखी है परातें,

रखनी है चलनी व करवा की थाल सजा के

ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!


ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!

पहनेंगी सारे गहने करेंगी सोलहों श्रृंगार,

बना रहे सातों जनम साजन का ऐसे ही प्यार,

आजीवन करती रहें चलनी से उनका दीदार,

अपनी अंतिम साँसों तक मना सकें यह त्योहार

न बदले कभी सुहागिनों के चाँद का व्यवहार!

ऐ गगन के चाँद आज मत तुम देर लगाना!



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