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Praveen Gola

Abstract

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Praveen Gola

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गद्दार

गद्दार

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कुछ गद्दार मेरे भारत में,

आज भी छिप कर बैठे हैं,

जो नोच रहे अपनी देशभक्ति को,

और खुद को भारतवासी कहते हैं।


ऐसे गद्दार जब पकड़े जाते,

तो हम पर ही हावी हो जाते,

खुद को बचाने की खातिर,

वो तब देश को बेचने निकल जाते।


ऐसे गद्दारों को ढूंढ - ढूंढ कर,

उन्हे मौत की बलि चढ़ाना है,

हम भारत माँ के लाल हैं,

हमको अपना देश बचाना है।


इन गद्दारों ने जो पाप किया,

उन्हे इसका फल ज़रूर मिला,

ये मिट गए अंधियारों में,

और नए जन्में फिर कुछ सालों में।


इस रामचन्द्र की भूमि पर,

जब भी रावण कोई आयेगा,

फिर से तब रामायण होगी, 

और रावण मारा जायेगा।


नए जन्में इन गद्दारों ने,

जब भी अपने हौसलों को बुलंद किया,

भारत माँ के वीर जवानों ने,

तब इनके इरादों को पस्त किया।


मेरा देश कभी नहीं बिकने वाला,

चाहे कितने गद्दार यहाँ पाँव पसारें,

हमें कसम है अपने तिरंगे की,

हम इसकी रक्षा में अपना शीश कटावें।


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