“ गाँवों की सौंधी मिट्टी “
“ गाँवों की सौंधी मिट्टी “
सब लोग
बदले लगते हैं
मेरे गाँव का
रास्ता बदल गया
कोई मुझे
पहचानता नहीं
एक जमाना निकाल गया !!
मुझे याद है
मेरा बचपन
अपने आँगन में
खेला करते थे
लुक्का-छुप्पी,
अक्कड़ -वक्कड़
बंबई -कलकत्ता देखा करते थे !!
थकने का नाम
कभी ना था
माँ का इतना
प्यार मिला
उनके ही आँचल
में छुप कर
सुख सपनों का सार मिला !!
बाबू जी के
आंकुश ने तो
शिष्टाचार का
पाठ पढ़ाया
अग्रज जितने थे
घर में
उन्होंने मेरा ज्ञान बढ़ाया !!
गुरु ने ज्ञान
दिया शिक्षा का
जीवन का सही
मार्ग बताया
युद्ध कला
चक्रव्यूह की रचना
का अद्भुत पाठ पढ़ाया !!
गाँवों की
सौंधी मिट्टी
मुझे खींच
कर लायी है
बाग -बगीचे
खेत हमारे
उसकी याद ले आयी है !!
सब लोग
बदले लगते हैं
मेरे गाँव का
रास्ता बदल गया
कोई मुझे
पहचानता नहीं
एक जमाना निकाल गया !
