गाँव
गाँव
कुक्कुट की बाँग सुन, जागते हैं लोग सब,
ध्यान धरते प्रभु का, पावन गाँव हैं।
पट खुलते गोठ के, मेमने सब कूदते,
दूध पीते माता के वे, मोड़ते पाँव है।
धेनु वत्स ध्वनि दे दे, माता को पुकारते हैं,
चाटती हैं माता जब, जागते भाव हैं।
उजियारा नया लेके, जग को जगाने भानु,
क्षितिज तब दीखते, जागते गाँव हैं।।१।।
पनघट जाती नारी, बाल पीछे पीछे भागे,
संग चल पाते मानो, पूँजी महान है।
चलाती हैं चक्की जब, पीसते हैं अन्न बीज,
सोते माता गोद बाल, उनकी शान है।
दुहती है धेनु माता, पात्र लिए खड़ा बाल,
छकता है दूध मीठा, माँ रसखान है।
बालकों का यूथ प्रिय, खेलता है माटी पर,
मिट्टी में वे सनते हैं, जो वरदान है।।२।।
बाट तीर खड़े द्रुम, फूल फल छाया देते,
पथिक सानंद लेते, वे महादानी हैं।
खेतों में फसल जगे, धरणी सुहानी लगे,
भूमिपुत्र श्रम करें, जो स्वाभिमानी हैं।
साँझ बेला पथ पर, पशु-पाँति सोहती है,
लौट आते गाँव ग्वाले, जो राजधानी है।
रात निज आँगन में, खाट डालें सोते सब,
उर नहीं भय कोई, सुने कहानी हैं।।३।।