पिता त्यागने तू चला है कहाँ
पिता त्यागने तू चला है कहाँ
बढ़ाने नए ज्ञान को तात ने।
दिखाया नया मग युवा गात ने।
समाया न फूला तुम्हें देखकर।
दुलारा तुम्हें सौख्य निज बेचकर॥
तुम्हारी जरूरत सभी पूर्ण की।
कटौती हुई खान औ पान की।
कदम नग्न भू पर न रखने दिया।
नहीं शूल पथ को परखने दिया॥
तुम्हें आस माना बढ़ाया तुम्हें।
बुलंदी बड़ी पर चढ़ाया तुम्हें ।
छुपाए सभी कष्ट हिय में सदा।
दिखाया जगत में बहुत हूँ मुदा॥
जताया नहीं कुछ कभी है किया।
अभावों भरा नित्य जीवन जिया ।
खुशी से तुम्हारी सदा खुश हुआ।
रुदन से तुम्हारे दुखी वो हुआ॥
जमाना तुम्हारा नया आ गया।
नशा भी नया शौक का छा गया।
खटकने पिता रोज लगने लगा ।
पुरानी प्रथा से भटकने लगा॥
पढ़ाने तुझे नित्य जो ले गया।
वही तो बड़ा बोझ अब बन गया।
जगा भाग्य है त्याग से नित यहाँ।
पिता त्यागने तू चला है कहाँ?