एकता की शक्ति
एकता की शक्ति
धर्म-जाति के बीज भी,
तब ही पनपते फूलते।
मानवता को भूल हम,
स्वार्थ अपना देखते।
माला विविध सुमनों की,
कितनी सुंदर सोहती।
विविध रंगी संस्कृति भी,
सबका मन है मोहती।
इस तरह बंट कर भला,
हम कुछ कहां कर पाएंगे।
एक और एक ग्यारह हों,
तभी उन्नति कर पाएंगे।
एकता की शक्ति को,
कौन तोड़ पाया भला।
अकेले चने ने भी कभी,
भाड़ फोड़ा है भला।
आओ मिले हों एक हम,
सब भूलकर मनभेद को।
खिल उठे ये देश अपना
पनपने न दें मतभेद को।