एक तवायफ के लिए चुने शब्द
एक तवायफ के लिए चुने शब्द
क्यों सूना सूना सा दिख रहा मैखाना
ना बन रही वो जाम ना चल रहा वो पैमाना
किसी ने खेल दिया तुम्हे बना के खिलौना
या छोड़ना चाहती हो काम ये घिनोना।
शायद अन्तः स्त्रीत्व को झाँक लिया होगा
अपनी हिम्मत और उनकी ताक़त को आंक लिया होगा
जुटाकर एकबार ऊर्जा उनको डाँट दिया होगा
डंडा उठाकर जानवरों को हाँक दिया होगा।
हे विधाता उस दिन उदधि
ज्वाला कैसे शांत किया होगा
कोठे की मालकिन ने
रोटी का टुकड़ा भी न दिया होगा।
पेट की भूख तो कुछ ही पलों की होगी
लेकिन उस दिन कई ताड़नायें सही होंगी
जिलाने के लिए रोटी तो मिल गयी होगी
पर जिस्म पर वही चार रोज वाली साड़ी लिपटी होगी
अपना दुःख खु
द को ही कही होगी-
आज रंगमंच शांत है
शाकि शांत है
ढोलकें शांत, मजीरा शांत
कोठे पर नृत्य का नजारा नहीं
मालकिन का तांडव भी नहीं।
क्या हो गया आज
विष जो जीवन में घुला था
उसे मुंह में घोल लिया आज
मेरे सामने बुलाओ
कहाँ है वो आज सभ्य समाज।
सामने आओ
जरा पहचानना चाहता हूँ आज
तुममे से जो कुछ मर मिटते थे उसपे
मर मिटते क्यों नहीं आज।
क्या उसकी संवेदना को समझा कभी
उसको समाज से काटकर
और उसी समाज से जोड़कर
रखने वाला ये समाज।