एक टीस
एक टीस
मेरे बीते पलों की व्यथा कह लो
कथा कह लो
या फ़लसफ़ा कह लो
जिस पल के आग़ोश में
संवेदना मेरी
डूबती उतराती रही
न चाह कर भी
वक़्त के थपेड़े को
सहलाती रही
संवेदना
पहेली है मेरे लिए
बार - बार कुंद होने पर भी
इठलाती है
मुस्कुराती है
मेरे दामन में ख़ुशियाँ लाती है
जानते हुए भी किसी दिन
मात खाएगी
हल्की बयार भी न झेल पाएगी।
दिल का सकून
तख़्तोताज़ के माफ़िक़
बैठा है बंद कोने में
झंझवातों को झेलता हुआ
पल हर पल
देता है भरोसा नया
आत्मदाह संवेदनाओं का
पल-पल बदलते चेहरे
परत दर परत खुलते चले जाते हैं
और तभी
आँखों की नमी
तब्दील होती जाती है हँसी में
क्या यही सार है ज़िंदगी का
या ज़िंदगी है कुछ और
ज़िंदगी असंभव तो नहीं,
कठिन ज़रूर है
इस पर भी इंसान को
इतना ग़रूर है।