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Rajib Kumar Yadav

Abstract

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Rajib Kumar Yadav

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एक तरफ़ा आशिक की व्यथा

एक तरफ़ा आशिक की व्यथा

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एक अजनबी से अचानक मुलाकात हो गई,

बातों ही बातों में कुछ बात हो गई।

      सिलसिला बातों का जैसे ही बढ़ने लगा,

        सुरूर उनका जहन में चढ़ने लगा।

मुझको आदत सी उनकी पड़ने लगी थी,

नींद रातों की आंखों से उड़ने लगी ।

       कमाल ऐसा हुआ की वो रोज आने लगे,

      अब तो वो ख्वाबों में भी जगाने लगे।

इश्क इस कदर उनका हम पे जालिम हुआ,

जीना उनकी मोहब्बत में भारी हुआ।

        पर उस तरफ कुछ अलग हालत थे,

 न थी उनके दिल में मोहब्बत और न कोई जज्बात थे।


     मैं च

ाहता हूँ! उनको यह कह न पाता था,

 लेकिन वो बिना कुछ कहे भी जानते थे ।

       उनका हंसना व मुस्कुराना आम था,

     पर उनके जुबां में कभी न मेरा नाम था

   

वो कहते थे कि वो किसी के नहीं है फिलहाल,

पर हमको सब ज्ञात होते हुए भी हम अज्ञात थे।


     वो महफिल खाली कर दी हमने जहां हम अज्ञात थे, वो वही महफिल थी जहां वो दोनों साथ थे।

  मैं पागल बेबस ही मजनूँ हुए जा रहा था हसीन ख्वाबों में जीए जा रहा था।

यह कथा उस लाचार आशिक की जिसने सीने पर पत्थर रख यह सब स्वीकार किया, लेकिन दिल में थी उसकी मोहब्बत अपार इसलिए उसने फिर भी यह दिलो के व्यापार का प्रयास किया।



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