एक तीस दिन का अजनबी
एक तीस दिन का अजनबी
एक तीस दिन का अजनबी,
मुझे सिखा गया बहुत कुछ,
एक तीस दिन का अजनबी,
मुझे बता गया बहुत कुछ।
उसे आलोचक कहूँ या प्रशंसक,
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे,
मगर उसकी समीक्षा के आगे,
हर लेख अब छोटा लगता मुझे।
कभी - कभी इस जीवन में,
कुछ ऐसे अजनबी भी आते हैं,
जो बिन जाने बिन पूछे ....
बहुत कुछ बता जाते हैं।
ऐसे अजनबियों का अक्सर,
शुकराना उधार रह जाता है,
ये वक़्त बीत जाता है ....
पर वो उधार वहीं रह जाता है।
मगर आज उस अजनबी को मैं,
करती तहे दिल से शुक्रिया,
जिसने मेरी हर रचना को पढ़,
जलाया हौसले का एक दिया।
शुरुआत में मैं घबराती थी,
उसकी हर समीक्षा से नज़र चुराती थी,
मगर फिर धीरे - धीरे एक एहसास जगा,
उसकी लिखी हर टिप्पणी पर एक भाव सजा।
अपनी लिखी हर रचना को,
जब एक पहचान मिली,
तब उस अजनबी के भाव से,
इस मन को एक शान मिली।
जीवन में जब बिना लाभ के,
हम कोई काम कर जाते हैं,
तभी हम किसी दूसरे की नज़र में,
अपनी पहचान बना पाते हैं।
उस तीस दिन के अजनबी से,
मेरा आज भी ना कोई व्यक्तिगत वास्ता,
क्योंकि इन तीस दिनों के बाद होगा,
हम दोनो का अलग - अलग रास्ता।