एक थी आयशा......
एक थी आयशा......
मन दुखी है ये सोचकर
कि एक और आयशा चली गई,
हम तुम जैसी ही एक लड़की
दहेज की आग में जल गई।
ससुराल में थी इतनी परेशान की
साबरमती में कूदकर उसने दे दी अपनी जान।
बनाया उस पर इतना दबाव
कि दो दहेज या दे दो तलाक
हार गए थे लड़ते लड़ते उसके माता पिता
बस इसी वजह से थी वो अपनी ज़िन्दगी से खफा
किया फैसला खुद को खत्म करने का
साहस खतम हो गया था आगे जीने का।
दर्द भरी मुस्कान के साथ अपनी ज़िन्दगी खत्म कर ली।
खुदगर्ज पति ने ना रोका उसे
माता पिता की ना सुनी उसने
हारी थी अपनी हार के बाद
पीछे छोड़ कर आंसू और ढेर सारे सवाल....
हैरान हूं मै दुखी हूं मै सोचकर की
आज भी लड़कियों को दहेज के नाम पर
डराया और सताया जाता है,
आजाद भारत में भी दहेज के नाम पर पैसा कमाया जाता है।
करबद्ध होकर मै करती हूं निवेदन
हिम्मत से करे सामना
ना उठाए ऐसा ठोस कदम।
ना रहे चुप,ना सहे गलत,
कमजोर पड़कर ना करे इन लोगो के
हौसले बुलंद।
आगे आकर उठाएं कठोर कदम
ताकि मुजरिमों को मिले सजा
और औरतों को मिले फिर से नया जनम।
