"एक सैनिक का प्रेम"
"एक सैनिक का प्रेम"
घुटनों से बह रही थी रक्त की धारा......!
फिर भी न वो खुद से हारा......!!
थी आँखों में प्रतिशोध की ज्वाला दफ़न......!!!
बांध रखा था उसनें अपने माथे पर कफन......!!!!
मिटाकर वजूद अपना......!
एक नयी प्रेमिका ऐसे अपने मन में बसाई थी......!!
खरोंच कर खुद अपनी किस्मत को......!!!
मातृभूमि उसनें अपने हाथों की लकीरों में लिखवाई थी......!!!!
दिन और रात क्या होता है वो हम नहीं जानते......!
सर्दी और गर्मी भी होती है, ऐसे कालचक्र को हम नहीं मानते......!!
हम कह दे तो दिन है, कहते ही हमारे हो जाएँ रात......!!!
जो रोक सकें रफ्तार हमारी ऐसी कोई हवा नहीं, ना ही कोई है ऐसी बरसात.....!!!!
करुंगा हिफाज़त तुम्हारी जब तक है दम में दम......!
चूमकर मिट्टी तुम्हारी, आज खाता हूँ मैं ये कसम......!!
झुकेगा ये सर सदा, ऐ मातृभूमि तुम्हारे ही सामने......!!!
तुम ही तो हो गुरूर मेरा, तुम से ही है मेरे मायने......!!!!
आओं तुम्हें अपनी नसों के प्रवाह में बहाऊँ......!
ये मातृभूमि तुम कहों तो तुम पर समर्पित हो जाऊँ......!!
रख लो तुम मुझे अपने आँचल की छाया में.......!!!
मैं गुमनाम हो जाऊंगा तुम्हारी मोह माया में.......!!!!
जब घाव मेरे दर्द को अंदर तक चीर जाता है......!
ये हमदम (मातृभूमि) तब तूँ मरहम बन जाता है......!!
अंत साँस तक तुम्हारी और मेरी प्रेम कहानी कायम रहेगी.....!!!
मेरा लहू तुम्हारा श्रृंगार, मेरी जवानी तुम्हारे ही नाम रहेगी......!!!!
