एक "साथ" की उम्मीद
एक "साथ" की उम्मीद
एक साथ की थीं उम्मीद मुझे कुछ और कहा मांगा उनसे।
वो साथ मिला एक पल के लिए अब दूर हुए हैं वो हमसे।।
चाहत थी कि हम दूर सही पर यादें बेमिसाल हो,
पर रब जाने बात हुई जो रूठ गई यादें हमसे।।
याद है आती आज भी वो बीते कल की सब बातें,
रखना नहीं कोई रिश्ता उन गैरों से अब दिल से।।
फ़र्क नहीं पड़ता उनको जब मेरे साथ ना होने का,
फिर हम क्यों जाने आस लगाएं बैठे हैं तब से दिल से।।
जब भूल चुके वो ही सब कुछ तो क्यों रखने रिश्ते दिल से,
जिस साथ की थी उम्मीद मुझे वो साथ मिले भी गैरों से।।
