STORYMIRROR

Anonymous User

Tragedy Others

3  

Anonymous User

Tragedy Others

एक "साथ" की उम्मीद

एक "साथ" की उम्मीद

1 min
263

एक साथ की थीं उम्मीद मुझे कुछ और कहा मांगा उनसे।

वो साथ मिला एक पल के लिए अब दूर हुए हैं वो हमसे।।


चाहत थी कि हम दूर सही पर यादें बेमिसाल हो,

पर रब जाने बात हुई जो रूठ गई यादें हमसे।।


याद है आती आज भी वो बीते कल की सब बातें, 

रखना नहीं कोई रिश्ता उन गैरों से अब दिल से।।


फ़र्क नहीं पड़ता उनको जब मेरे साथ ना होने का, 

फिर हम क्यों जाने आस लगाएं बैठे हैं तब से दिल से।।


जब भूल चुके वो ही सब कुछ तो क्यों रखने रिश्ते दिल से,

जिस साथ की थी उम्मीद मुझे वो साथ मिले भी गैरों से।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy