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एक रेप पीड़िता की आवाज़

एक रेप पीड़िता की आवाज़

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कराहती हुई रूह को सहलाते हैं

खुदा करेगा इन्साफ ये समझाते हैं


जिस उम्र में उठती है डोली किसी की

हम उसी दौर में कफ़न सिलवाते हैं


सुना है हमने गम ज़दा है इंसानियत भी

बिलखते अपनों को ये कह के बहलाते हैं


बहुत मुमकिन है भूल जाए जहां ये फ़साना

हम सरीखे लोग रोज़ ये दर्द पाते हैं


घर में पूजते है बाहर मार देते है

खुदा ये लोग कैसे ऐसा कर पाते हैं


हमें था शौक़ ए ज़िन्दगी मगर करें तो क्या

जिए ज़माना क़यामत तक हम तो जाते हैं...!


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