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Prashant V Shrivastava

Romance

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Prashant V Shrivastava

Romance

क्या तुम्हें भी पता चलता है?

क्या तुम्हें भी पता चलता है?

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भीगी हुई ज़ुल्फ़ों के रस्ते

जब गर्दन से गुजरते हैं

हर मोड़ पे दिल धड़कता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


ये चमकीले लब मीठे हैं

इन्हें हवा के झोंके चखते हैं

और फिर बादल पिघलता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


पलकों के झुकने उठने में

आदाब अदा हो जाते हैं

ये देख के चाँद निकलता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


अपनी नटखट सी लट को तुम

कानों के पीछे दबाती हो

तो गजरा बहुत ख़ुश होता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


साड़ी को ज़मीं से बचाते हुए

झुकती हो तो ज़ुल्फ़ें उड़ती हैं

तब लबों का जोड़ा हँसता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


मेरे गीतों की धड़कन तुम हो

मैं तुम्हारी मिसालें लिखता हूँ

तुम से हर शेर जो मिलता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


आँचल की हवा उड़ाती हो

ज़ुल्फ़ों को झूला झुलाती हो

हर झोंका तुमसे लिपटता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


बेमतलब के अल्फ़ाज़ लिए

मैं जो भी शायरी लिखता हूँ

बस ज़िक्र तुम्हारा होता है

क्या तुम्हें भी पता चलता है?


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