एक मंज़िल अभी बाकी है
एक मंज़िल अभी बाकी है
एक मंज़िल
अभी बाकी है,
ज़िंदगी की एक उड़ान
अभी बाकी है
एक हौंसला लिए मन में
जो धड़कन बनके
पलता है दिल में
ऊँची चट्टान की आँखों में
आँखें डाल के
चल पड़ा हूँ मैं
अपनी राह पे
खूब लगता है तू
बादलों से ऊँचा उठके
मुझपे हँसता है तू
ज़रा एक बार
मेरी नज़र से भी तो देख
कितना लाचार
और बेबस है तू
मेरे हौंसलों के सामने
बस, मेरा एक और
शिकार है तू
पानी बनके
बहाऊंगा तुझे
शोला बनके
पिघलाउँगा तुझे
कण - कण करके ही सही
तुझपे कूच करता
रहूँगा मैं
तू ही है
मेरी मंज़िल
तुझे पाने के लिए ही तो
हूँ मैं यहाँ आया
कितने कांटे बिछाए हैं तूने
कितने ज़ख्म दिए हैं तूने
हर ज़ख्म को
ईनाम माना है मैंने
हर ज़ख्म को
हथियार बनाया है मैंने
कहा था मैंने
मेरी बातों को
शेर की दहाड़ मत समझना,
दहाड़ने से शिकार नहीं मरता
यह तो करम था मेरा
जिसने मुझे हारना
नहीं सिखाया
तेरी आँखों में
डर दिख रहा है मुझे
मेरे हौंसलो के सामने
झुकना है तुझे
बाज़ुओं में है जान इतनी
आ लग जा गले
ए मेरे दोस्त
दुश्मन कभी माना नहीं
तू तो बस
मंज़िल है मेरी
क्या खूब नज़ारा है यहाँ
हर साँस में
कितना सुकून है यहाँ
हौंसले ही तो हैं मेरे
जिससे मैंने अपने नसीब में
यह है पाया
वहाँ दूर दिख रही है
एक और भी ऊँची चट्टान
जीतने के लिए लगेंगे
और भी बुलंद हौंसले
और फूंकनी पड़ेगी
पंखों में जान
मुकाम के लिए
शुक्रिया मेरे दोस्त
निकलने का समय
आ गया है
क्योंकि
एक और मंज़िल
अभी बाकी है
ज़िंदगी की एक और उड़ान
अभी बाकी है...।