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Kumar Abhishek

Abstract

4.7  

Kumar Abhishek

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एक मौन स्वीकृती के साथ

एक मौन स्वीकृती के साथ

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जीती हो हरेक ख़्वाब को मेरे

एक मौन स्वीकृति के साथ

चलती हो हर कदम मेरे बराबर

एक मौन स्वीकृति के साथ 


सम्बंध को जकड़ें अपनी बाहों में

इच्छाओं को पकड़ें अपनी चाहों से

उठतीं और सुनती हो हर पल

एक मौन स्वीकृति के साथ 


कर लो कुछ अपने लिए भी

जी लो अपने आप के लिए

बाहर आ जायों रिश्तों के बंधन से

बेटी, बहन, बीबी, माँ या कोई और भी

कर लो कभी विद्रोह और निकलो इन


सबसे बाहर और जी लो अपने आप के लिए

तुम्हारी स्वीकृति से भी आगे है जीवन

माना रचा है तुमने, सजाया है तुमने और

सम्भाला भी हैं हर कुछ बड़े ही सलीके से 


लेकिन तुम्हें भी हक़ है सब कहने का

और लोगों को भी हर कुछ मौन होकर सुनने का

तो चलो, कर लो मुझसे शुरुआत फिर

मैं चलूँगा, मैं सुनूँगा, मैं जियूँगा, मैं उठूँगा, मैं बैठूँगा

एक मौन स्वीकृति के साथ ...!


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