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prakash jaiswal

Romance

5.0  

prakash jaiswal

Romance

एक ख़्वाब लिए मैं बैठा हूं

एक ख़्वाब लिए मैं बैठा हूं

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एक ख़्वाब लिए मैं बैठा हूं

देखूँ इसे या इसरार करूँ

या अपनी पाक मुहब्बत का,

आँखों आँखों इज़हार करूँ..!!


लब सूखे है बेचैन है दिल,

और वक़्त लगा पर उड़ता है,

चुप रह कर ही खामोशी से,

मैं कैसे सब इकरार करूँ..!!


वो बैठी है मैं बैठा हूं,

और मंद हवाएं चलती है,

देखूँ उसको, रोकूँ खुद को ,

मैं कैसे उसको प्यार करूँ..!!

एक ख़्वाब लिए मैं बैठा हूं ,

देखूँ इसे या इसरार करूँ



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