एक हुनर्.......
एक हुनर्.......
मैं उदास हूँ...
मैं लिखूँगी...
वो लिखा हुआ एक सुर में पढूंगी....
फिर उसी सुर में मैं सबको सुनाऊँगी....
और खूब सारी तारीफें बटोर लूँगी...
आईने के सामने अपनी पीठ को जोरों से थपथपाते हुए खुद को मुस्कुराते हुए पाऊँगी...
हा, वाकई हुनर र्है मुझमें...
एक खास हुनर
अपनी उदासी को मुस्कुराहट में तब्दील करने का...
नम आँखो को में नई उमंग , नया उत्साह भरने का....
और सबसे जरूरी,
खुद को मेरे सबसे करीब पाने का.....
