एक हसीना
एक हसीना
एक झलक और सब फना
उसकी बातों का जादू चला
हसीना थी या कोई कातिल
ना अब तक इसका पता चला।।
खुदगर्ज बन सबको लूटे
जालिम का ऐसा सिक्का चला
भावनाओं की कदर ना उसकों
उसने, बेवफाई का इल्म पढ़ा।।
साफ दिल या गंदी नियत है
ना इसका कुछ पता चला
धोखा देना मकसद उसका
इतिहास से उसके पता चला।।
कौन है वो कहाँ से आई
भेद ना हमकों इसका मिला
रास्ता अपना भटक गई या आदत उसकी
इस बात का पता चला।।
अच्छी सूरत की धनी है
ना गुण-अवगुण का पता चला
अच्छी नारी सा व्यवहार है उसका
धोखा देती क्यूँ पता चला।।
अखियों से वो करती घायल
दीवानों का हाल बुरा
मिन्नते करते पैर भी पड़ते
मन में क्या है ये पता चला।।
