एक हॉरर फिल्म सा ही डरावना
एक हॉरर फिल्म सा ही डरावना
अपनों को बिछड़ते देखना
फिर जो रिश्ते बचे हैं
उन्हें एक एक करके टूटते देखना
यह मंजर
सच में अकल्पनीय होता है
एक हॉरर फिल्म सा ही
बेहद डरावना और घिनौना होता है
इंसान में इंसानियत ही क्यों नहीं है
यह बात मुझे आज तक समझ
आई नहीं है
सब क्या जोड़ तोड़ करते रहते हैं
प्यार को एक तरफ रख
हर समय
वक्त की मार झेल रहे
किसी आदमी को और
परेशान करते रहते हैं
उस पर एक के बाद एक वार
करते रहते हैं
हर समय अपनी पारखी
नजर से उसे तराजू में
तोलकर उसका मोलभाव
करते रहते हैं फिर
जैसे होते हैं उनके
आंकलन ठीक वैसा ही
सामने वाले के साथ व्यवहार
करते हैं
यह टूटते हुए और
बिखरते हुए रिश्तों की
गली तो होती है
एक अंधेरी सुरंग सी
बहुत ही भयानक
और डरावनी
कोई न भी चाहे तो
लोग जो ऐसा करते हैं
वह आपको उस गली में
धक्का देते ही देते हैं
इससे बाहर कोई कभी निकल
नहीं पाता
आखिर में बस होता है यह कि
मौत की गली का दरवाजा
जैसे ही खुलने को होता है
रिश्तों के सब पुराने घर
एकाएक चरमराकर
उस जिंदगी की आखिरी
सांस लेते आदमी पर गिर
पड़ते हैं और
उस खंडहर के मलबे के नीचे
ही दबकर रह जाती है
उस इंसान की लाश
यह मंजर सच में बहुत
डरावना होता है।