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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational

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Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational

एक हँसी फिर जली

एक हँसी फिर जली

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एक हँसी फिर जली

वह जो थी

बड़े नाजों से पली

मिश्री की इक डली,

सुरीले स्वर से उसके

खनकते थे घर के घर

और अपनी यह गली,

लुप्त हुई वह कली

जो थी फली

अगणित अरमानों के संग 

थे भरे उसमें

जननी के ख्वाबों 

के सारे रंग,

निष्ठुर माली से ही

गई वह छली

दे दी उस बेरहम ने

अपनी अतृप्त अभिलाषा

की वेदी पर

उस मासूम की बलि,

अरे परिष्कृत पुरोधा

होश में आओ

सृष्टि की अनुपम शोभा वह

उसे तो बचाओ

उसे तो न जलाओ।।



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