एक भिखारी की व्यथा
एक भिखारी की व्यथा
बनारस के घाटों से गुज़रते वक़्त
एक भिखारी मिला भीख मांगते हुए
मैंने कहा क्यों रोते हो अब तो घाट भी wifi है,
ऐश करो ये बहार जो आयी है
क्या है ये wifi इसकी मुझको समझ नहीं
मिल जाये दो वक़्त की रोटी क्या
इतना भी हमको हक़ नहीं
न छत है, न घर है, न ही है वोटर-ए-आईडी
हूँ मैं भी एक भारतीय ये शक होता है
मेरा दिल इस मुफलिसी को देख रोता है
होगा कुछ नहीं हमारा हम ये जानते हैं
दो वक़्त का खाना दे दो बस यही मांगते है
यहाँ ज़िन्दगी मुँह को आयी है
और तुम कहते हो घाट हमारा wifi है।
