Pawan Jha
Tragedy
पहले वो झोपड़ी जली
अब शहर भी जल गया
उस भयानक आग में
हिमालय भी पिघल गया।
बात जो शुरु हुई
रात तक थी जो चली
शाम तक उस बात का
अस्तित्व ही बदल गया।
हुई थी बस एक रोशनी
चिंगारी कहलायी गयी
इसमें कितना सच है
वो तो पहले-ही-पहल गया।
एक बात
हड्डी की ज़ुबा...
अपनाते भले न हो मुझे पर मेरी बद्दुआओं से तो हैं डरते ! अपनाते भले न हो मुझे पर मेरी बद्दुआओं से तो हैं डरते !
लो अग्नि संस्कार किया स्त्री विमर्श में अपने हाथों से लिखें पृष्ठों का। लो अग्नि संस्कार किया स्त्री विमर्श में अपने हाथों से लिखें पृष्ठों का।
है वही दिन,रात का रोना। वही दरके हुए गाने, वही रूठा जमाना। है वही दिन,रात का रोना। वही दरके हुए गाने, वही रूठा जमाना।
कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था। कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था।
राजनीति सुविधा हुई ,बनी आज व्यवसाय। मीठा-मीठा गप्प सब, कड़वा थूकत भाय।1। राजनीति सुविधा हुई ,बनी आज व्यवसाय। मीठा-मीठा गप्प सब, कड़वा थूकत भाय।1।
क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे। क्या तुम अपने घर में मेरा अपना घर दे पाओगे।
एक शिकायत है तुझसे माँ,क्यों मुझे ब्याह दिया विदेस? एक शिकायत है तुझसे माँ,क्यों मुझे ब्याह दिया विदेस?
दूर देश से बेशकीमती,नक्काशीदार पिंजरा मंगवाया। दूर देश से बेशकीमती,नक्काशीदार पिंजरा मंगवाया।
कितने तो आँसू बहे होंगे इन आँखों से, घर ये खारे पानी का। कितने तो आँसू बहे होंगे इन आँखों से, घर ये खारे पानी का।
बड़ा खामोश लम्हा है इन चुप्पियों के दौरान भी। बड़ा खामोश लम्हा है इन चुप्पियों के दौरान भी।
दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर। दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर।
और कर रहे हैं शर्मिंदा सच को, झूठ के झुंड में। और कर रहे हैं शर्मिंदा सच को, झूठ के झुंड में।
जीवन इतना सरल नहीं जीवन इतना सरल नहीं
सर्वाधिक महत्वपूर्ण है पुस्तक का वह पृष्ठ, जहां मुद्रित पुस्तक का अधिकतम खुदरामूल्य। सर्वाधिक महत्वपूर्ण है पुस्तक का वह पृष्ठ, जहां मुद्रित पुस्तक का अधिकतम खुदर...
मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है
टूट गई मन की गागरिया टुकड़े झोली भरती। रंगहीन ले...य़ टूट गई मन की गागरिया टुकड़े झोली भरती। रंगहीन ले...य़
काव्य कुसुम कानन में कविता, कलुषित हुई कहो कैसे? काव्य कुसुम कानन में कविता, कलुषित हुई कहो कैसे?
सड़क काली हो या भूरी जहां से भी निकलती है स्याह कर देती है। सड़क काली हो या भूरी जहां से भी निकलती है स्याह कर देती है।
आज मैं गाँव से लौटा हूँ। मन में गहन पीड़ा लिए बैठा हूँ। आज मैं गाँव से लौटा हूँ। मन में गहन पीड़ा लिए बैठा हूँ।
किन्तु, ख़ुद ख़त्म होने से पहले ही, पहुँच में उसके दूसरी कुर्सी। किन्तु, ख़ुद ख़त्म होने से पहले ही, पहुँच में उसके दूसरी कुर्सी।