एक अंकुर
एक अंकुर
प्रकृति ने दिया एक अंकुर था उसे
सींचकर खून से अपने कली बनाया था जिसने।
मुझे जन्म देने के बदले दर्द मिला था उसे
मुस्कुराकर नवजीवन को गले लगाया था जिसने।
मेरी लात खाकर भी खुशी मिली थी उसे
मुझ बेजुबान को बोलना सिखाया था जिसने।
खुद की कमर के दर्द को भुला दिया मेरे लिए
खुद झुककर मुझे चलना सिखाया था जिसने।
खुद के सुख को दे मुझे मेरा दुख मिला उसे
मेरी परवरिश में खुद को भुलाया था जिसने।
कैसे करूं बयां उस मां के उपकारों को मैं भला
मेरे मन और आत्मा को प्रेम के सागर से भर दिया हो जिसने।
