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एक अजनबी

एक अजनबी

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न जाने जीवन में ऐसा मोड़ क्यों आता है,

क्यों एक अजनबी इस दिल को भाता है।

फिर क्यों उसके सिवा न और कुछ याद आता है,

क्यों एक अजनबी इस दिल को भाता है।।


न खाने की सुध है, न ही पीने का ख्याल सताता है,

उसके ही खयालों में ही सारा वक्त बीत जाता है।

उसका साथ इस दिल को गुदगुदाता है,

उससे बिछड़ने के ख्याल से भी दिल घबराता है।


उसका साथ ही अब दिल हर पल चाहता है,

क्यों एक अजनबी इस दिल को भाता है।।

अब तो मै खुद से बस यही सवाल पूछती हूं,

क्या मै अब भी वही पहले वाली मै हूं।।


पहले तो किसी से बोलने से भी डरती थी,

पर अब उसके लिए सबसे लड़ पडती हूं।

अपने से ज्यादा उसकी पसंद का ख्याल सताता है,

क्यों एक अजनबी इस दिल को भाता है।।


अब तो इसी अहसास के साथ दिल जीना चाहता है,

हां अब तो बस वही अजनबी दिल को भाता है।।


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