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संजय कुमार

Abstract

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संजय कुमार

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एहसास हो तुम

एहसास हो तुम

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हर जग भी छोटा हो जाता है

जब छाया में तुम्हारी आता हूं

स्वर्ग में क्या महसूस होता होगा

जो महसूस तुम्हारी बांहों में पाता हूं

छांव हो तुम इस जलती धूप में

किसे पता तुम किस के नसीब में हो

हर दर्द की दवा हो तुम हो होठों कि मुस्कान

दिल की हर धड़कन से लगता है 

तुम हो किसी के दिल की जान।


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