दया की नजर
दया की नजर
नजर जो पड़ी मेरे मुर्शिद की मुझ पर।
बन गया दीवाना उनके राहे-कर्म पर।।
वासनाओं से घिरा था यह जीवन का सफर।
शाने-उल्फत मिली जो थी उनकी महर।।
साकी ने जो पिलाई अपने नजरों- करम से,
मोहब्बत के नशे में कटते मेरे चारों पहर।
नजर जो पड़ी मेरे मुर्शिद की मुझ पर।।
यह थी इनायत मेरे मुर्शिद की मुझ पर।
लुटाई सारी दौलत इस नाचीज के कर्म पर।।
बदल दी जिंदगानी जो गया उनके दर पर।
ठुकराया था जिन्होने
करते एहसान मुझ पर।।
संवार दिया मेरा जीवन जो दोज़क में पडा था,
ऐसी की मेहरबानी मेरे मुर्शिद ने मुझ पर।।
नजर जो पड़ी मेरे मुर्शिद की मुझ पर।।
खाक छान रहा था अंजानी डगर पर।
मिले तुम जब से हुआ कुर्बान तुझ पर।।
रोशन हुआ तुमसे की जो रहमत मुझ पर।
मांगता बस इतना "दया की नजर" इस गरीब पर।।
अब नहीं कोई चाहत न ही कोई इरादा,
बस "नीरज" सदा हाजिर हो तेरी तालीम पर।
नजर जो पड़ी मेरे मुर्शिद की मुझ पर।।