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Umakant Kale

Tragedy

4.0  

Umakant Kale

Tragedy

दुनिया

दुनिया

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मेरे ख़ुदा मेरे भगवान, ज़रा बता मुझे

दुनिया में नारी हो के आना, क्या है सजा मुझे ।।

ना है सवालों के जवाब, ना दुनिया में आना मुझे

तेरी करनी से ना बचा कोई, दे रज़ा मुझे ।।

औरत कि कोख से जन्म लेते हैं सभी

इज़्ज़त औरत की उछालते हैं, कुछ तो बता मुझे ।।

बचपन भी ना जी पाती, यहाँ बच्चियाँ

तू ही बता कौन इंसाफ पाता है, जता मुझे ।।

इससे बची तो जवान हो जाती हैं लड़कियाँ

फिर बाद में भी जवानी लुटी है, पता तुझे ।।

दर-ब-दर हर पल अन्याय उसने सहा 

ससुराल में जली कभी लड़कियाँ, ना पता तुझे ।।

हर मुकाम, हर चौराहा यहाँ हवस से भरा है

नारी का जीना जैसे मरना है, यहाँ ना आना मुझे ।।

दिखा तेरी खुदाई ,बिना नारी चला दुनिया

तेरा अस्तित्व,कहाँ तू बैठा है, दिखा मुझे ।।

नारी होके ना पैदा होना है , बस यही ठाना है

ना अब ना कभी दुनिया में आना है, मुक्ती देना मुझे।।


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