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दुनिया की उलझन

दुनिया की उलझन

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बहुत सारी उलझनों की

वजह यही है।

मैं अपनी जगह सही हूँ,

तू अपनी जगह सही है।


सही गलत की समझ ही,

किसी समस्या का हल है।

गर समझ ना हो कभी,

तो जीवन विकल है।

  

गर जीवन चार दिन की है,

फिर मैं तुम अहं का मेला क्यूँ।

नाम के सिवा कुछ नहीं दुनिया में,

उसे छोड़ दूसरों का रेला क्यूँ।

  

एक दिन मिलना सबको मिट्टी में,

जो जीवन भर झमेला क्यूँ।

दौलत, शौहरत, ऐशो-आराम,

तो आदमी खाली हाथ जाता

अकेला क्यूँ।


तू कहता है मधुर,

केवल नाम ही सही है।

बहुत सारी उलझनों की

वजह यही है।

मैं अपनी जगह सही हूँ,

तू अपनी जगह सही है।



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