दर्द बेशर्म!
दर्द बेशर्म!
क्या करूँ इस दर्द का,
जो आता तो है,मगर जाता नहीं।
इसमें उन्हें भी कसूरे बेवफ़ा कैसे मान लूँ,
इरादा तो उनका भी था प्यार का।
मोहब्बते मिलन,क़िस्मत में कहाँ लिखा
वरना चाँद-तारों के बीच आशियाना होता।
अब तो दर्द ही दर्द है,इस राह में,
बस ख़्वाबों में ही जीने का बहाना होता।