दोस्ती
दोस्ती
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बेमतलब बेहिसाब सी है ये
दोस्ती खुली किताब सी है ये
बंधती नही दायरों में कभी
मानती नही उसूल कायदों में कभी
कभी लगे हकीकत तो
कभी ख्वाब सी है ये
दोस्ती खुली किताब सी है ये
ना दिन जैसी ना रात सी है ये
कोने में दबी मीठी याद सी है ये
सुलगते जिंदगी के सवालों में
धीमी धीमी बरसात सी है ये
दोस्ती खुली किताब सी है ये
पतझड़ का मौसम जिंदगी का
एक अकेली आबाद सी है ये
कड़वे कड़वे किस्से कई
एक मीठे स्वाद सी है ये
दोस्ती खुली किताब सी है ये
दम घुटता रिश्तो में कभी
तब जीवन में सांस सी है ये
दोस्ती खुली किताब सी है ये।