आना चाहे तो फिर आजा
आना चाहे तो फिर आजा
चाहे ख्वाब बनके पलकों में आ
चाहे नज़्म बनके लफ़्ज़ों में आ।
चाहे फ़िज़ा बनके मेरे दिल को छू जा
चाहे मेरा हिस्सा बनके मुझमें ही रह जा।
चाहे मौसम की तरह तय वक़्त पे आ
चाहे बारिश की तरह बस यूँ ही बरस जा।
चाहे ज़ुल्फो की छांव तले मुजे यूँ ही ढक ले
चाहे बाहों के घेरे में मुजे यूँ ही रख ले।
तेरा बचपन थोड़ा मुझसे भी बाँट ले
बच्चों की तरह कभी मुझे भी डाँट ले।
डर लगे कभी तो मुजे आवाज़ दे दे
मेरी बेज़ुबान शायरी को अल्फ़ाज़ दे दे।
कभी ख़ामोशियों से मेरी बातें चुन लें
कभी तेरी हकीकत मेरे ख़यालों से बुन ले।
कभी मुस्कुरा दे बेवजह ही यूँ ही
कभी शर्मा दे बस पलकें जुका कर।
कभी बन जा हकीकत ख़यालों से
कभी बन जा सुलझन मेरे सवालों की।
चाहे रूठ के आ, चाहे मान के आ
बस एक बार तू फिर से आजा।