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अजय एहसास

Abstract

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अजय एहसास

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दोस्ती में साजिशें

दोस्ती में साजिशें

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ऐ दोस्त, तेरी दोस्ती में सब छुपाता आ गया

मेरे लिए दुश्वारियां परेशानियां साजिश किये

वो कुछ भी ना कर पायेगा मैं फिर बताता आ गया।


साजिश करे मैं जाऊं फंस दुख हो उसे मुझे देख हंस

वो चाहता है द्वन्द हो आंखों में कुहरे का धुन्ध हो

पर सत्य का सूरज तो कुहरे को मिटाता आ गया।


उसको गुमां है पैसे का है और अपने जैसे का

मंदिर में जोड़े हाथ वो ना दे गरीब का साथ वो

देख भिक्षुक हाथ जोड़े कि विधाता आ गया।


मुंह पे बोले ऐसा लगता है बड़ा हमदर्द वो

देकर भाषण जैसे नेता दूर करता दर्द वो

दूर से सुन बात उसकी खिलखिलाता आ गया।


कहता है कि हम तो चाहें आप भी आगे बढ़ो

हम पी एच डी कर रहे हैं आप भी ऐसे पढ़ो

मांगू तो ना दे किताबें और पढ़ाता आ गया।


मेरे मुंह पर मेरी वाली और उसकी तरफदारी

हवस अपनी मिटाने को ना देखता वो रिश्तेदारी

बनना अवसरवादी कैसे वो बताता आ गया।


दूसरे तो छोटे है वो पेट निकले मोटे हैं

उनका सिक्का खरा सोना बाकी तो सब खोटे हैं

उपब्धियां ट्रेनों बसों में वो गिनाता आ गया।


जब कोई मुश्किल हुई सुनकर मैं पहुंचा दौड़कर

सोचे करे बर्बाद मुझको समय रहते तोड़कर

था बुझाने का हुनर उसमें मगर

आग फिर भी वो लगाता आ गया।


दोस्ती पर उसके मेरे दोस्त सब अफसोस कर

बैठे सड़कों के किनारे अपने मन को कोस कर

देखकर आफत मेरी वो खिलखिलाता आ गया।


वो है कहता दूर हूं क्या आग घर की बुझाऊंगा

नासमझ उसे नापता मैं सुन के दौड़ा आऊंगा

अपना पराया वक्त ये हमको बताता आ गया।


दोस्ती का दोस्त मेरे क्या यही अन्जाम है

दोस्त बनकर हमको डसता हम पर ही इल्जाम है

जो हुआ अच्छा हुआ मैं गुनगुनाता आ गया।


कोई ना होता बुरा ये सब समय का खेल है

अब हुआ 'एहसास' की ये जिन्दगी की रेल है

बैर रक्खूं मैं न उससे सब भुलाता आ गया।


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