दोस्ती के रंग
दोस्ती के रंग
संदीपनि ऋ्षि आश्रम मिले दो मित्र
एक ग्वाल पुत, दूजा ब्राह्मण सुत।
जहॉ एक की माया दुनिया की नज़रों से परे थी,
वहीं दूसरे को निर्धनता में भी अजीब सी संतुष्टि थी।
पत्नी के जिद्द के आगे दरिद्र ब्राह्मण विवश हुए।
अपने सखा द्वारकाधीश के दर्शनार्थ प्रस्थान किए।
भुखे, प्यासे ,नंगे पैर किए यात्रा अविराम।
तब कहीं जा पहुँचे भव्य नगरी द्वारका धाम।
बना दृश्य अप्रितम कृष्ण-सुदामा मिलन का।
जिसने मिटा दिया हर भेद राजा - रंक का
और किया जग स्थापित प्रतिमान सच्ची मित्रता का।
