सच के रंग 2
सच के रंग 2
आशंकित है मन परोपकारिता से ..
कहीं यह फिर से किसी धोखे का आगा़ज तो नहीं
भावनाओं पर अंकुश लगाना चाहूँ
पर मन को यह स्वीकार्य नहीं
इसी दुविधा ने मन को कई बार भ्रमित किया।
पर कर्म मेरा बाधित हो ये हो न सका।
यही सिलसिला अब जीवन का ध्येय बना।
और इसी तरह नए अनुभवों का आगमन होता रहा।
