सच के रंग
सच के रंग
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हर दिन उत्साहित मन रहे,
ऐसा कोई जीवन मंत्र नहीं।
तन की स्वस्थता बनी रहे,
ऐसा मिलता कोई संजीवनी नहीं।
हर रिश्तों से हम घिरे हुए,
पर किसी में वो अपनायत नहीं।
जो चाहूँ झट हासिल कर लूँ,
सब पाकर भी वो चमक नहीं।
सुख में मिलते सब खडे़ यहॉ,
दुख में मिलता कोई हाथ नहीं।
हर जीवन शैली बदल रही,
है बदलता कोई बर्ताव नहीं।
नई सोच की होड़ लगी है,
पर अपने मूल्यों का आभास नहीं !
इस कोलाहल की नगरी में,
बस एकाकीपन का ज्ञान नहीं !
