दिल की आवाज़
दिल की आवाज़


'खिलखिलाकर खिलती है,
बन-ठनके, पायल पहनकर,
छनछन नाचती, ये तो मेरी परी है,
ऊँची आवाज़ से डरती है,
कभी नहीं झगड़ती है,
हर बात पे प्यार जताती है,
माँ-बाप से बहोत प्यार करती है,
भाई की वो दुलारी है,
दादाजी की शहज़ादी है,
इस घर की वो रानी है,
पता ही नहीं चला,
अब बन गई वो पराई है,
शादी करके, की उसकी बिदाई है,
हसते खेलते घरमे,
आज मायूसी बस छाई है,
हर रोज़ बातें करती है,
हर ख्वाब से वो मिलती है,
'ससुराल' के वो सारे रिश्ते निभाती है,
हर ज़िम्मेदारी को वो समझती है,
प्यार स
े खाना बनाती है,
सब के बाद वो खाती है,
बात बुरी लगे, फिर भी मुस्कुराती है,
दिल टूट भी जाये चाहे,
होठो से वो हसती है,
मान-सम्मान वो सबको देती है,
बस अपमान से वो डरती है,
कुछ चाहा नहीं उसने कभी,
कुछ माँगा ही नहीं उसने कभी,
इज्जत और प्यार की ही वो दीवानी है,
पढ़ी-लिखी, समज़दार और बहादुर बच्ची,
सिसक-सिसक के जीती है,
'सब ठीक है', बोलकर,
नज़रे चुराके वो रोती है,
क्यों देख नहीं पाते हम?
जो दिल की आँखों से वो कहती है,
आज भी एक 'सीता', हर रोज़,
अग्नि परीक्षा देती हे।'