दिकु प्रेम-आँखें
दिकु प्रेम-आँखें
सुनो दिकु...
पता है? यह जो तुम्हारी आँखें है ना वह कोई साधारण नहीं है
वह भांप लेती है हर एक चीज़,
जैसे,
उन्हें मन के भीतर का दर्द सुनाई देता है
उन्हें भावनात्मक प्रेम दिखाई देता है
प्रत्यक्ष ना होकर भी वह मेरी पीड़ा को समझ जाती है
अश्रुओं के सागर को रोकने के लिए वह वहीं ठहर जाती है
जब आखरी बार देखी थी तुम्हारी आँखें
तो न जाने वह कितना कुछ कह गयी
पर शब्दों का साथ न होने के कारण
वह, वहीं पर चुप रह गयी
प्रेम की आखों को तुम्हारी आँखों की एक झलक का इंतज़ार है
ह्रदय मेरा दिकु प्रेम के मिलन को बेकरार है
सच कहता हूँ, आज भी मुझे तुम से पहले की तरह ही बेशुमार प्यार है
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए।