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V. Aaradhyaa

Inspirational

4  

V. Aaradhyaa

Inspirational

दीप -शिखा सी जलती नारी

दीप -शिखा सी जलती नारी

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नारी जय की परिचायक है इस भरे पूरे से संसार में।

दीप-शिखा सी जलती नारी फिर भी है अंधकार में।


जो जननी बन संतानों को अमृत सा पय-पान कराती।

सूर्य किरण बन जो जीवन ज्योति सरोवर में नहलाती।


जिसकी परछाई दुलार है जिसकी ममतामय पुकार है।

जो नारी दिग्भ्रमित मनुज को हर क्षण है राह दिखाती।


जो कश्ती है स्वयं आज भी डूब रही जैसे बीच धार में।

दीप - शिखा सी जलती नारी फिर रहती अंधकार में। 


नारी के शोषण की गाथा दिल को दहलाने वाली है।

आज मानिनी के मन पर छाई सघन घटा काली है।


सीता-सावित्री के कुल पे क्यों है विपदाओं का साया।

रस की नदी भी नीरस है और अमृत कलश खाली है।


आज भरी है किसने पावन नारी मन के तार-तार में। 

दीप - शिखा सी जलती नारी फिर भी है अंधकार में।


पुरुषों ने नारी के तन को केवल एक खिलौना बना।

गौतम ने कब यशोधरा को सत्य कहो पूरा पहचाना।


नारी सिर्फ समर्पण वश ही बनती नर की अंकशायनी।

रूप - शमा पर जलने को आतुर रहता है हर परवाना।


नारी जय की परिचायक है इस भरे पूरे से संसार में।

दीप-शिखा सी जलती नारी फिर भी है अंधकार में।




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