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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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धूप छाँव

धूप छाँव

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जीवन में धूप छाँव

आता जाता ही रहता है,

क्योंकि जीवन में कुछ भी

स्थाई नहीं होता।

ठीक वैसे ही जैसे

धूप हो या छाँव

कभी नहीं टिकता,

अँधेरे के बाद उजाला

अपरिहार्य है,

सुख दुःख तो जीवन का आधार है,

खुशी हो गम, यही जीवन का सार है।

सब एक दूजे के पूरक हैं,

नियम के पक्के हैं,

सदा आते हैं जाते है

बार बार अपना क्रम दोहराते हैं

शायद यही उनकी नियति है

धूप छाँव की भी शायद

हर परिस्थिति में देख लीजिए

कुछ ऐसी ही गति है।



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