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Prerna Karn

Abstract

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Prerna Karn

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धर्म की परिभाषा सिर्फ प्रेम है

धर्म की परिभाषा सिर्फ प्रेम है

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जीवन एक कर्मक्षेत्र है,

टिका शाश्वत जो जीवन में, वह सिर्फ धर्म है,

धर्म अहिंसा सर्वोपरि है,

परिभाषा इसकी सिर्फ प्रेम है।


दु:ख-सुख से है न कोई अछूता,

मानवता को निहार रहा,

कहाँ है वो देव-सी मूरत !

हर पल उसको पुकार रहा।


जीवन मानों क्षीर-सागर,

कैसे पार लगाए कोई,

न कोई अपना, न कोई पराया,

फिर भी खुद को पार न पाया।


राम हों या चाहे कृष्णा,

गौतम बुद्ध या नानक हों,

सबने एक ही पाठ पढ़ाया,

परमात्मा है सिर्फ प्रेम का भूखा।


जीवन सफल है बस उसका,

जिसने है मर्यादा समझी,

न्याय, अहिंसा आत्मसात कर,

नींव जीवन में प्रेम की रखी।


जीवन तो एक कर्मक्षेत्र है,

धर्म इसके लिए अहम है,

इक-दूजे को प्रेम दीजिए, 

कि धर्म की परिभाषा सिर्फ प्रेम है।


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